लेखक पं. हेमन्त रिछारिया |
पूजा करना हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है। पूजा व प्रार्थना करना ईश्वर को मनुष्य की ओर से दिया गया धन्यवाद है। अक्सर देखने में आता है कि लोग अपने पूजागृहों में विभिन्न देवी-देवताओं के कई विग्रह (मूर्ति) का अम्बार लगाए रखते हैं, हालांकि ये उनकी श्रद्धा का विषय है लेकिन हमारे शास्त्रों में प्रत्येक गृहस्थ के लिए पांच देवों की पूजा का नियम बताया गया है। जिसे 'पंचायतन' कहा जाता है।
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