माँ (A few poems)

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माँ (A few poems)

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Administrator
कब्र के आगोश में जब थक के सो जाती है माँ,
तब कहीं जा कर, ज़रा थोड़ा सुकूँ पाती है माँ।

फिक्र में बच्चों की कुछ ऐसी घुल जाती है माँ,
नौजवाँ हो कर के भी, बूढ़ी नज़र आती है माँ।

रूह के रिश्तों की ये गहराइयाँ तो देखिये,
चोट लगती है हमारे और चिल्लाती है माँ।

कब ज़रूरत हो मेरी बच्चों को इतना सोच कर,
जागती रहती हैं आँखें और सो जात है माँ।

चाहे हम खुशियों में माँ को भूल जायें दोस्तों,
जब मुसीबत सर पे आ जाए, तो याद आती है माँ।

लौट कर सफर से वापस जब कभी आते हैं हम,
डाल कर बाहें गले में सर को सहलाती है माँ।

हो नही सकता कभी एहसान है उसका अदा,
मरते मरते भी दुआ जीने की दे जाती है माँ।

मरते दम बच्चा अगर आ पाये न परदेस से,
अपनी दोनो पुतलियाँ चौखट पे धर जाती है माँ।

प्यार कहते है किसे और ममता क्या चीज है,
ये तो उन बच्चों से पूँछो, जिनकी मर जाती है माँ।


माँ




माँ , तेरी गोद मुझे,
मेरे अनमोल,
होने का,
एहसास कराती है॥

माँ, तेरी हिम्मत,
मुझको,
जग जीतने का,
विश्वास दिलाती है॥

माँ, तेरी सीख,
मुझे ,
आदमी से,
इंसान बनाती है॥

माँ, तेरी डाँट,
मुझे, नित नयी,
राह दिखाती है॥

माँ, तेरी सूरत,
मुझे मेरी,
पहचान बताती है॥

माँ, तेरी पूजा,
मेरा, हर,
पाप मिटाती है॥

माँ तेरी लोरी,
अब भी, मीठी ,
नींद सुलाती है॥

माँ , तेरी याद,
मुझे,
बहुत रुलाती है॥

माँ , माँ है और कोई उस जैसा नहीं होता


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चारों वर्णों की समानता और एकता
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सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्। ऊँ शांतिः शांतिः शांतिः
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Re: माँ (A few poems)

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Administrator


माँ कबीर की साखी जैसी
तुलसी की चौपाई-सी
माँ मीरा की पदावली-सी
माँ है ललित स्र्बाई-सी।

माँ वेदों की मूल चेतना
माँ गीता की वाणी-सी
माँ त्रिपिटिक के सिद्ध सुक्त-सी
लोकोक्तर कल्याणी-सी।

माँ द्वारे की तुलसी जैसी
माँ बरगद की छाया-सी
माँ कविता की सहज वेदना
महाकाव्य की काया-सी।
माँ अषाढ़ की पहली वर्षा
सावन की पुरवाई-सी
माँ बसन्त की सुरभि सरीखी
बगिया की अमराई-सी।

माँ यमुना की स्याम लहर-सी
रेवा की गहराई-सी
माँ गंगा की निर्मल धारा
गोमुख की ऊँचाई-सी।

माँ ममता का मानसरोवर
हिमगिरि सा विश्वास है
माँ श्रृद्धा की आदि शक्ति-सी
कावा है कैलाश है।

माँ धरती की हरी दूब-सी
माँ केशर की क्यारी है
पूरी सृष्टि निछावर जिस पर
माँ की छवि ही न्यारी है।

माँ धरती के धैर्य सरीखी
माँ ममता की खान है
माँ की उपमा केवल है
माँ सचमुच भगवान है।



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Re: माँ (A few poems)

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Administrator
बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका-बासन
चिमटा फुकनी जैसी माँ

बाँस की खुर्री खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी
थकी दोपहरी जैसी माँ
चिड़ियों के चहकार में गुँजे
राधा-मोहन अली-अली
मुर्ग़े की आवाज़ से खुलती
घर की कुंडी जैसी माँ

बिवी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी थोड़ी सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी माँ

बाँट के अपना चेहरा, माथा,
आँखें जाने कहाँ गई
फटे पूराने इक अलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ

– निदा फ़ाज़ली


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Re: माँ (A few poems)

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Administrator
माँ
तुम्हारी लोरी नहीं सुनी मैंने,
कभी गाई होगी
याद नहीं
फिर भी जाने कैसे
मेरे कंठ से
तुम झरती हो।

तुम्हारी बंद आँखों के सपने
क्या रहे होंगे
नहीं पता
किंतु मैं
खुली आँखों
उन्हें देखती हूँ ।


मेरा मस्तक
सूँघा अवश्य होगा तुमने
मेरी माँ !
ध्यान नहीं पड़ता
परंतु
मेरे रोम- रोम से
तुम्हारी कस्तूरी फूटती है ।

तुम्हारा ममत्व
भरा होगा लबालब
मोह से,
मेरी जीवनासक्ति
यही बताती है ।
और
माँ !
तुमने कई बार

छुपा-छुपी में
ढूँढ निकाला होगा मुझे
पर मुझे
सदा की
तुम्हारी छुपा-छुपी
बहुत रुलाती है;
बहुत-बहुत रुलाती है ;
माँ !!!


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Re: माँ (A few poems)

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Administrator
- रचना श्रीवास्तव
वो है मेरी माँ

----------------
ख़ुद कष्ट सह के मुझ को जनम दिया जिस ने वो है मेरी माँ
पहला परिचय दुनिया से करवाया जिसने वो है मेरी माँ
रही गंदे में पड़ा उसका बच्चा कब वो देख सकती थी
सुला सूखे में मुझको ख़ुद गीले में सोती थी
लँगोट मेरी समय बे समय धोती थी
घिन कभी वो न करती थी
मेरी पहली मेहतरानी
थी वो मेरी माँ


भूख से पहले मिला खाने को मुझको
उसके हाथ से ही मिला हर निवाला मुझको
जो मैं चाहती थी बना देती थी
मुझको हर समय वो रसोई में खड़ी दिखती थी
पहला खाना मेरा बनाया जिसने वो थी मेरी माँ
नन्हें कदमों को चलना सिखाया
पहला शब्द हमें पढ़ाया ,
अच्छे बुरे का भेद बताया
हमको गीता कुरान सुनाया
बनी जो मेरी पहली शिक्षिका वो थी मेरी माँ


बीमार पडूँ तो लाख जतन करती थी
कभी अजवाइन का तेल मालती थी तो कभी हींग लगाती थी ,
कभी हल्दी का गरम दूध पिलाती थी
हाथ जोड़ मन्नतें मांगती थी
मेरी पहली वैद्य थी मेरी माँ
स्कूल से आने पर बहुत सी बातें होती थी
जो सारी माँ से कहनी होती थी
बचपन की वो छोटी खुशियां छोटे छोटे ग़म
जो माँ से साँझे करते थे हम
मेरी पहली दोस्त थी मेरी माँ


कर दे जो कोई चुगली मेरी ,
उस से खूब बहस करती थी
घर आ के मेरी भी बात सुनती थी
फिर क्या करूं क्या न करूं ,फैसला सुना देती थी
बनी जो पहली वकील और न्यायाधीश मेरी ,वो थी मेरी माँ
आँचल के साए तले में बड़ी होने लगी
जीवन में किस पथ जाऊं कौन सी राह अपनाऊं
बताती समझती रही मेरी माँ
जीवन को निर्देशित कर ,मुझको अच्छा भविष्य दिया
पहली निर्देशिका भी थी मेरी माँ


प्रारम्भ हुआ जीवन का सफर ,इस बड़े संसार में
थी उसकी प्रार्थनाओं साथ में
कि मालती रहेगी हाथ कठिनाइयां राह में
ईश्वर का वचन लगा उसके हर व्यवहार में
पाया जिस के रूप में भगवन मैंने वो है मेरी माँ
मेरा अस्तित्व मेरा प्यार
रग रग में बहता उसका दुलार
मेरी हर साँस पर जिसका अधिकार,
चरणों में जिसके मेरा संसार
वो है मेरी माँ केवल मेरी माँ


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Re: माँ (A few poems)

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माँ संवेदना है - ओम व्यास जी की कविता


माँ…माँ संवेदना है, भावना है अहसास है
माँ…माँ-माँ संवेदना है, भावना है अहसास है
माँ…माँ जीवन के फूलों में खुशबू का वास है,
माँ…माँ रोते हुए बच्चे का खुशनुमा पलना है,
माँ…माँ मरूथल में नदी या मीठा सा झरना है,
माँ…माँ लोरी है, गीत है, प्यारी सी थाप है,
माँ…माँ पूजा की थाली है, मंत्रों का जाप है,
माँ…माँ आँखों का सिसकता हुआ किनारा है,
माँ…माँ गालों पर पप्पी है, ममता की धारा है,
माँ…माँ झुलसते दिलों में कोयल की बोली है,
माँ…माँ मेहँदी है, कुमकुम है, सिंदूर है, रोली है,
माँ…माँ कलम है, दवात है, स्याही है,
माँ…माँ परामत्मा की स्वयँ एक गवाही है,
माँ…माँ त्याग है, तपस्या है, सेवा है,
माँ…माँ फूँक से ठँडा किया हुआ कलेवा है,
माँ…माँ अनुष्ठान है, साधना है, जीवन का हवन है,
माँ…माँ जिंदगी के मोहल्ले में आत्मा का भवन है,
माँ…माँ चूडी वाले हाथों के मजबूत कधों का नाम है,
माँ…माँ काशी है, काबा है और चारों धाम है,
माँ…माँ चिंता है, याद है, हिचकी है,
माँ…माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है,
माँ…माँ चुल्हा-धुंआ-रोटी और हाथों का छाला है,
माँ…माँ ज़िंदगी की कडवाहट में अमृत का प्याला है,
माँ…माँ पृथ्वी है, जगत है, धूरी है,
माँ बिना इस सृष्टी की कलप्ना अधूरी है,
तो माँ की ये कथा अनादि है,
ये अध्याय नही है…
…और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है,
और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है,
तो माँ का महत्व दुनिया में कम हो नहीं सकता,
और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता,
और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता,
तो मैं कला की ये पंक्तियाँ माँ के नाम करता हूँ,
और दुनिया की सभी माताओं को प्रणाम करता हूँ.


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Re: माँ (A few poems)

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Administrator
Main Kabhi Batlata Nahin
Par Andhere Se Darta Hoon Main Maa
Yun To Main,Dikhlata Nahin
Teri Parwaah Karta Hoon Main Maa
Tujhe Sab Hain Pata, Hain Na Maa
Tujhe Sab Hain Pata,,Meri Maa

Bheed Mein Yun Na Chodo Mujhe
Ghar Laut Ke Bhi Aa Naa Paoon Maa
Bhej Na Itna Door Mujkko Tu
Yaad Bhi Tujhko Aa Naa Paoon Maa
Kya Itna Bura Hoon Main Maa
Kya Itna Bura Meri Maa

Jab Bhi Kabhi Papa Mujhe
Jo Zor Se Jhoola Jhulate Hain Maa
Meri Nazar Dhoondhe Tujhe
Sochu Yahi Tu Aa Ke Thaamegi Maa

Unse Main Yeh Kehta Nahin
Par Main Seham Jaata Hoon Maa
Chehre Pe Aana Deta Nahin
Dil Hi Dil Mein Ghabraata Hoon Maa
Tujhe Sab Hai Pata Hai Naa Maa
Tujhe Sab Hai Pata Meri Maa

Main Kabhi Batlata Nahin
Par Andhere Se Darta Hoon Main Maa
Yun To Main,Dikhlata Nahin
Teri Parwaah Karta Hoon Main Maa
Tujhe Sab Hain Pata, Hain Na Maa
Tujhe Sab Hain Pata,,Meri Maa


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Re: माँ (A few poems)

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प्रणाम करूँ तुझको माता

-सीमा सचदेव


हे जननी जीवन दाता
प्रणाम करूँ तुझको माता
तू सुख समृद्धि से संपन्न
निर्मल-पावन है तेरा मन
तुझसे ही तो है ये जीवन
तुझसे ही भाग्य लिखा जाता
प्रणाम करूँ तुझको माता

माँ की गोद पावन-आसन
हम वार दें जिस पर तन मन धन
तू देती है शीतल छाया
जब थक कर पास तेरे आता
प्रणाम करूँ तुझको माता

इस विशाल भू मंडल पर
माँ ही तो दिखलाती है डगर
माँ ऐसी माँ होती न अगर
तो मानव थक कर ढह जाता
प्रणाम करूँ तुझको माता

हर जगह नहीं आ सकता था
भगवान हमारे दुख हरने
इस लिए तो माँ को बना दिया
जगजननी जग की सुख दाता
प्रणाम करूँ तुझको माता

धरती का स्वर्ग तो माँ ही है
इस माँ की ममता के आगे
बैकुण्ठ धाम , शिव लोक तो क्या
ब्रह्म लोक भी छोटा पड जाता
प्रणाम करूँ तुझको माता

ऐसी पावन सरला माँ का
इक पल भी नहीं चुका सकते
माँ की हृदयाशीष बिना
मानव मानव नहीं रह पाता
प्रणाम करूँ तुझको माता
क्यों मातृ दिवस इस माँ के लिए
इक दिन ही नाम किया हमने
इक दिन तो क्या इस जीवन में
इक पल भी न उसका दिया जाता
प्रणाम करूँ तुझको माता

माँ बच्चों की बच्चे माँ के
भूषण होते हैं सदा के लिए
न कोई अलग कर सकता है
ऐसा अटूट है ये नाता
प्रणाम करूँ तुझको माता
माँ को केवल इक दिन ही दें
भारत की ये सभ्यता न थी
माँ तो देवी मन मंदिर की
हर पल उसको पूजा जाता
प्रणाम करूँ तुझको माता

बच्चों के दर्द से रोता है
इतना कोमल माँ का दिल है
बच्चों की क्षुधा शांत करके
खाती है वही जो बच जाता
प्रणाम करूँ तुझको माता

सच्चे दिल से इस माता को
इक बार नमन करके देखो
माँ के आशीष से जीवन भी
सुख समृद्धि से भर जाता
प्रणाम करूँ तुझको माता



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Re: माँ (A few poems)

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Administrator
तपते मरु में ,राहत देती
माँ बरगद -सी छांव है .
दया- से उफनते जीवन में
मां ,पार लगाती नाव हैं

- राजेन्द्र अविरल

मां
(1)


बेटा /बेटी के होने पर
नारी माँ का दर्जा पा जाती है.
फिर सारे जीवन भर उनपर
ममता -रस बरसाती है ,

शोर शराबों वाले घर में
चुप होकर सब कह जाती है
कर त्याग तपस्या परिवार में
मां मौन साधिका बन जाती है

लगे भूख जब बच्चों को मां
सब्जी -रोटी बन जाती है
धूप लगी जो बच्चों को
मां छांव सुहानी हो जाती है .

ग़र मर भी जाए तो
हर मूरत में नज़र जाती है
झूठ -फरेब की दुनिया में
मां बडी जरूरत बन जाती है.

मां जीवन में ही समग्र
चेतन परमेश्वर बन जाती है
मां के अलावा कहीं ना मिलता
तभी तो ईश्वर कह्लाती है.

मां
(2)

तपते मरु में ,राहत देती
माँ बरगद -सी छांव है .
दरिया- से उफनते जीवन में
मां ,पार लगाती नाव हैं
उबड-खाबड राहों पर
माँ छोटी -सी पगडंडी है
भूखे ,छोटे बच्चों के लिए
माँ चूल्हे पर पकती हंडी है
खारे पानी की दुनिया में
माँ ,मीठे पानी का झरना है
हौले से समझाती मां
लेकिन नहीं किसी से डरना है.
झांसा-फरेबों की दुनिया में
मां भोर का उलियारा है
हर बच्चे के लिए
मां का रूप जहाँ से न्यारा है.
दुनिया का ये रूप दिनों दिन
मां से ही निखरता जाता है
ढूंढों ना कहीं तुम ईश्वर को
वो मां में ही मिल जाता है



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Re: माँ (A few poems)

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Administrator
माँ
नि:शब्द है
वो सुकून
जो मिलता है
माँ की गोदी में
सर रख कर सोने में

वो अश्रु
जो बहते है
माँ के सीने से
चिपक कर रोने में

वो भाव
जो बह जाते है अपने ही आप

वो शान्ति
जब होता है ममता से मिलाप

वो सुख
जो हर लेता है
सारी पीड़ा और उलझन

वो आनन्द
जिसमे स्वच्छ
हो जाता है मन .......................................................
........................................................

माँ
रास्तों की दूरियाँ
फिर भी तुम हरदम पास

जब भी
मैं कभी हुई उदास

न जाने कैसे?
समझे तुमने मेरे जज्बात

करवाया
हर पल अपना अहसास
और
याद हर वो बात दिलाई

जब
मुझे दी थी घर से विदाई

तेरा
हर शब्द गूँजता है
कानों में संगीत बनकर

जब हुई
जरा सी भी दुविधा
दिया साथ तुमने मीत बनकर

दुनिया
तो बहुत देखी
पर तुम जैसा कोई न देखा

तुम
माँ हो मेरी
कितनी अच्छी मेरी भाग्य-रेखा

पर
तरस गई हूँ
तेरी
उँगलिओं के स्पर्श को
जो चलती थी मेरे बालों में

तेरा
वो चुम्बन
जो अकसर करती थी
तुम मेरे गालों पे

वो
स्वादिष्ट पकवान
जिसका स्वाद
नहीं पहचाना मैंने इतने सालों में

वो मीठी सी झिड़की
वो प्यारी सी लोरी
वो रूठना - मनाना
और कभी - कभी
तेरा सजा सुनाना
वो चेहरे पे झूठा गुस्सा
वो दूध का गिलास
जो लेकर आती तुम मेरे पास
मैने पिया कभी आँखें बन्द कर
कभी गिराया तेरी आँखें चुराकर

आज कोई नहीं पूछता ऐसे
 
तुम मुझे कभी प्यार से
कभी डाँट कर खिलाती थी जैसे
-सीमा सचदेव


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Re: माँ (A few poems)

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खूब सौंधी सी मेरी अम्मा

-अनुज खरे
 


ममता के एक धागे से
घर गूंथती मेरी अम्मा
तन गला मनके बन जाती
त्याग-तपस्या मेरी अम्मा

 
दवा दर्द में, दुख में छांव
खुश में खुशियां मेरी अम्मा
रोटी संग गुड़, वो दाल में घी
खूब सौंधी सी मेरी अम्मा


चौका बासन छौंक लगाती
खट्टी इमली सी मेरी अम्मा
प्यार जताती, नेह लुटाती
दादी-नानी सी मेरी अम्मा


गुड्डी संग गुड़िया बन जाती
गुड्डे-गुड़िया ब्याह रचाती
विदाई में आंसू भर लाती
ऐसी भोली सी मेरी अम्मा


विपदा-दुख में आस जगाती
लोहे की पेटी मेरी अम्मा
खलिहानों और चौपालों में
चाची-ताई मेरी अम्मा


बड पर बनती भाग्य का डोरा
मंदिर में सूरत मेरी अम्मा
खेती-मिट्टी बाबूजी
सबकी चिंता मेरी अम्मा


बन्ना-बन्नी में मां-सास सी
खूब हुलसती मेरी अम्मा
कथा-बुलउए में जान वो
गीत भजन सी मेरी अम्मा


तीजों में त्योहार सी
पावन उमंग मेरी अम्मा
बारिश में छाता बन जाती
सर्दी में स्वेटर मेरी अम्मा


देहरी पर बनती घर का दर्पण
सांझ-सुबहरिया मेरी अम्मा
आंगन में तुलसी, घर में दीप
सूरज बन जाती मेरी अम्मा


बडी-बडी सी ठेस को
हंसकर पी जाती मेरी अम्मा
जब ढलते रुपयों में रिश्ते
आंसू बन जाती मेरी अम्मा


नफरत के इस संसार में
भोर का तारा मेरी अम्मा


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Re: माँ (A few poems)

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Administrator
तेरा वो चेहरा,
हमेशा याद आता है।
तेरी वो चूड़ी की खनक,
तेरी वो पायल की छनक,
हमेशा मेरे कानों में सरगम की तरह बजती है।
तेरी वो गोल सी लाल बिंदी,
हमेशा मेरी आंखों में चमकती है।
तेरी वो गहरी काली आँखे,
हमेशा मुझसे कुछ कहती है।
तेरे वो पतले होंठ,
हमेशा मुझे लोरी सुनाते है।
तेरी वो काया
और उसमें लिपटी हुई लाल रंग की साड़ी,
हमेशा मुझे रंगीन कर देती है।
माँ तू तो मेरी आत्मा में है।
पर क्या करू
संसार का नियम ही कुछ ऐसा है,
हर बार एक बेटी ही माँ से दूर होती है।


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Re: माँ (A few poems)

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Administrator
प्यारी माँ
तू कैसी है
क्या मुझको याद करती है  
तूने पूछा था कैसा  हूँ मै  
मै अच्छा हूँ
तेरी ही सोच के जैसा हूँ
यंहा  सब सो  गए हैं
मै अकेला बैठा  हूँ
सोचता  हूँ
क्या करती होगी तू
काम करते करते
बालों का जूडा बनाती होगी
या फिर
बिखरे समानो को समेटती होगी
पर माँ
अब समान फैलाता  होगा कौन
मै तो यंहा बैठा हूँ मौन  
सुनो माँ
तुमने सिखाया था
सच बोलो सदा
आज जो सच बोला
तो क्लास के बाहर खड़ा था
तुमने ने जैसा कहा है
वैसा ही करता हूँ
ख़ुद से पहले
ध्यान दुसरों का रखता हूँ
पर देखो न माँ
सब से पीछे रह गया हूँ
सब कुछ आता है मुझको
फ़िर भी
टीचर की निगाह से गिर गया हूँ
किसी पे हाथ न उठाना
तुम ने कहा था  
पर जानती हो माँ
आज
उन्होंने बहुत मारा  है मुझे
जवाब मै भी दे सकता था
पर मारना तो
बुरी  बात है न माँ
यंहा सभी मुझे
बुजदिल समझते  हैं
मै कमजोर  नही हूँ
मै तो तेरा बहादुर बेटा हूँ
हूँ न माँ
अब तुम ही कहो
क्या मै
कुछ ग़लत कर रहा हूँ
तेरा कहा ही तो कर रहा हूँ
तू तो
ग़लत हो सकती नही
फिर सब कुछ
क्यों ग़लत हो रहा है
बताओ न माँ
क्या
इनको ये बातें मालूम नही
माँ
एक बार यहां आओ न
जो कुछ मुझे बताया
इन्हे भी समझाओ न
एक बात बताओ
क्या आज भी तू कहेगी
कि तुझे  मुझपे  गर्व है
माँ बोलो न
क्या मै तेरी सोच के जैसा हूँ
और तेरा राजा बेटा हूं!

    -रचना श्रीवास्तव


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चारों वर्णों की समानता और एकता
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सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्। ऊँ शांतिः शांतिः शांतिः
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Re: माँ (A few poems)

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हर आशीष में तुमने कहा

चांद सूरज से आकाश पे चमको

जीवन के मनचाहे मुकाम पर पहुँचो

पर राह में गिरे इन थके लोगों का

क्या हो माँ, तुम ही कहो

जीवन की इस दौड़ में

गिरतों को झुककर उठा लूँ

साथ लेकर चलूँ

या

रौंदकर आगे बढ़ जाऊँ

मत कहना फैसला यह

निजी खयाल का है

आदमी और अस्मद् के

अपने सवाल का है

अहमियत और सहूलियत के

अनगिनित टकराव का है

मेरे ख्याल से तो

शेर और बकरी बनाए

जिसने इसी दुनिया में

उसी अनदेखे जाल का है...

               -शैल अग्रवाल


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Re: माँ (A few poems)

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प्रवासी चिन्ता

मां आज व्याकुल है मेरा मन, चिंता तेरी सताती है।

तूने अपना सुख, अपना श्रम, अपना श्वेद सघन देकर,

मेरे सुख मे अपने सुख, दुख में अपने दुख बिलराकर,

जीने की कला सिखाई थी, उंगली मेरी पकड़-पकड़कर,

तेरा वह निश्छल निश्वार्थ प्रेम, तेरी वह अथक लगन,

स्नेहपूर्ण नयनों की छवि, अब भी मन मे आती है।

 

मां आज व्याकुल है मेरा मन, चिंता तेरी सताती है।

 

माना मैने ही की थी, तुझसे सात समंदर की दूरी,

इसे बनाए रखना अब, बन गयी है अपनी मजबूरी,

पर तू यह न समझना, मेरी भक्ति घटी है तुझमें,

तू निशिदिन प्रतिपल रहती है मेरे मन मंदिर में,

आ-आकर तू मेरे जागृत मन में या कभी सपन में,

कभी बनती है सघन छांव, कभी फुहार बरसाती है।

 

मां आज व्याकुल है मेरा मन, चिंता तेरी सताती है।

 

तेरे सम अपनी, तेरे सम प्यारी, मुझको मेरी मातृभूमि,

भवसागर की झंझा में उसको, बना न सका मैं कर्मभूमि,

उस मातृभूमि के ऊपर जब, संकट के बादल घिरते हैं,

उसके ही जाये पाले पोसे, विश्वासघात जब करते हैं,

पंजाब या कश्मीर की घाटी, लहू बहाता भाई का भाई,

नस-नस में रक्त उबलता है, फटने लगती यह छाती है।

 

मां आज व्याकुल है मेरा मन, चिंता तेरी सताती है।

चिता जलाए एक बार, चिंता पल पल सुलगाती है।

मां आज व्याकुल है मेरा मन, चिंता तेरी सताती है।

                               -महेशचन्द्र द्विवेदी


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Re: माँ (A few poems)

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मां

पूछा जब सूरज ने

घास के तिनके से

सूख सूख कैसे तू हरियाता है

इतनी ज्वाला सह जाता है

बोला वह हंसकर

बैठा हूँ मां की गोद में।

शैल अग्रवाल



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Re: माँ (A few poems)

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एक प्रश्न

यह जो भाई हमारे हैं

तेरी आँखों के तारे हैं

मैं कौन हूँ माँ

मेरा तुम्हारा रिश्ता क्या है?

बूढ़ी माँ के छुर्रियों वाले हाथों ने

मेरा सर सहलाया

मुझे बतलाया----

'' तू मेरा हृदय है बेटी

तेरे ही सहारे

मैने हर सुख-दुख

यह जीवन जिया है।

साँसों के इस रिश्ते को

समझ ले मेरी लाडली

मैने तुझे और तूने मुझे रोज ही

एक नया जन्म दिया है।''

 शैल अग्रवाल


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Re: माँ (A few poems)

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उसकी सस्ती धोती में लिपट

मैने न जाने

कितने रंगीन सपने देखे हैं

उसके खुरदुरे हाथ

मेरी शिकनें संवार देते हैं

उसकी दमे से फूली सांसें

पड़ाव हैं

कमजोर दो बाहें

मेरी ठांव हैं

उसकी झुर्रियों में छिपी हैं

मेरी खुशियां

और बिवाइयों में

भविष्य!

-दिव्या माथुर


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Re: माँ (A few poems)

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Administrator
अपनी कमजोर आंखों से

चुन लेती है वह मेरे फूल शूल

अपने से सटा लेती है मुझे

अपने जोड़ों का वह दर्द भूल

हैं शुभ्र-केश प्रकाश स्तंभ

मेरी कश्ती कभी नहीं डोली

है ध्रुवतारे सी साथ सदा

मैं रास्ता कभी नहीं भूली

 

पांव पोंछता रहता है

उसका सदा उजला आंचल

आज भी मेरे सर पर है

उसकी दुआओं का गगनांचल

             -दिव्या माथुर



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Re: माँ (A few poems)

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मां के हाथ का खाना


बहुत स्वादिष्ट खाना बनाती है

तुम्हारी मां

कौन-से मसाले डालती है वो

पूछकर आना उनसे

कहा एक मित्र ने,

हंस पड़ी मां

स्वादिष्ट खाना क्या सिर्फ मसालों से बनता है?

 

कौन-सा घी इस्तेमाल करते हो तुम

पूछा दूसरे मित्र ने,

खाने में तरलता सिर्फ घी से आती है?

एक प्रश्न मस्तिष्क में कौंधा

इसमें कोई खास बात नहीं,

अगर हमारे पास समय हो

तो हम भी बना दें

इतना ही स्वादिष्ट खाना

जवान लड़कियों ने कहा

क्या सिर्फ समय देने से ही बन जाता है

खाना स्वादिष्ट

 

नहीं,

कुछ न कुछ अद्भुत जरूर है मां के पास

तभी तो

करेले में भी आ जाती है मिठास!

 

उन्हें बहुत अच्छा लगता है

गर्म गर्म खाना और अपने सामने बैठकर खिलाना

गुब्बारे सी फूल जाती है रोटी

मचल उठता है बच्चा

पहले मैं लूंगा

 

फूलों सी महक आती है उसमें

तैरता रहता है स्नेह का घी

सब्जी जीभ से लगते ही

सम्पूर्ण जिस्म बन जाता है जीभ

तृप्त हो जाती है आत्मा

 

मां देखती रहती है, मुस्कुराती रहती है

कभी-कभी आंसू छलक जाते हैं उसके,

सोचता हूं किसी मां के हाथ का खाना खाकर ही

ऋषियों ने कहा होगा-

अन्न ही ब्रह्म है!

    -अनिल जोशी



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